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बुद्ध का सन्देश

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Post by Akash78 Tue Nov 29, 2011 4:32 pm

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नमस्कार मित्रों ! भारत भूमि विभिन्न धर्म –संस्कृति का देश कहलाता है ...हम यहाँ भगवान बुद्ध एवं उनके आम जन को दिए गए संदेशो के विषय में .जानने का प्रयास करेंगे! कपिलवस्तु में जयसेन नाम का एक शाक्य रहता था ! सिंहहनु उसका पुत्र था ! सिंहहनु का विवाह कच्चाना से हुआ था ,उसके पाँच पुत्र थे ! शुद्धोधन,धौतोधन,शु क्लोदन,शाक्योदन,तथ ा अमितोदन ! पाँच पुत्रों के अतिरिक्त सिंहहनु की दो लड़किया थी – अमिता तथा प्रमिता ! परिवार का गोत्र आदित्य था ! शुद्धोधन का विवाह महामाया से हुआ था !आज से लगभग पूर्व २५०० वर्ष पूर्व नेपाल की तराई में ५६३ ईस्वी वैशाख पूर्णिमा के दिन कपिलवस्तु (ऐसे संकेत मिलते है कि इस नगर का नाम महान बुद्धिवादी मुनि कपिल के नाम पर पड़ा है ) के लुम्बिनी नामक वन मे शाक्य कुलमें राजा शुद्धोदन के यहाँ महामाया की कोख से एक बालक का जन्म हुआ !जन्म के पांचवे दिन नामकरण संस्कार किया गया ! बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया !उसका गोत्र गौतम था !इसीलिए वह जनसाधारण में सिद्धार्थ गौतम के नाम से प्रसिद्द हुआ ! सिद्धार्थ के जन्म के सातवे दिन ही उनकी माता का देहांत हो गया !अतः प्रजापति गौतमी ने उनका पालन पोषण किया ! सिद्धार्थ का एक छोटा भाई भी था ,उसका नाम नन्द था ! वह शुद्धोदन का महाप्रजापति से उत्पन्न पुत्र था !उसके चाचा की भी कई संताने थी ! महानाम तथा अनुरुद्ध शुक्लोदन के पुत्र थे तथा आनंद अमितोदन का पुत्र था देवदत्त उसकी बुआ अमिता का पुत्र था ! महानाम सिद्धार्थ की अपेक्षा बड़ा था आनंद छोटा !
बुद्ध धर्म के बारे में आम भारतीय बहुत कम या नहीं के बराबर ही जानता है ! या फिर जो विद्यार्थी मिडिल स्कूल , हाई स्कूल , या कॉलेज में इतिहास पढ़ते ,उन्हें एक सामान्य जानकारी के रूप में बुद्ध धर्म के सिद्धांतों के बारे में जानकारी हो जाती है ! हममे से अधिकाँश लोग ये जानते है कि बुद्ध ने ईश्वर , आत्मा , परमात्मा आदि को नकार दिया है ! इसलिए कई लोग इसे नास्तिकोका धर्म भी कह देते है ! तो क्या हम ये समझ ले की एक ऐसा धर्म जिसकी मातृभूमि भारत देश रहा हो ! जो इस भारत भूमी में पला बड़ा हो , जो महान सम्राट अशोक , कनिष्क , हर्षवर्धन के समय में अपने चरमोत्कर्ष पे रहा हो औरविश्व के कई देशो में जिसके मानने वाले आज भी हो , उनकी प्रासंगिकता आज एकदम से ही समाप्त हो गई ?


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Post by Akash78 Tue Nov 29, 2011 4:35 pm

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आइये देखे –– बौद्ध जीवन मार्ग – सन्देश
१. शुभ कर्म , अशुभ कर्म तथा पाप

१. शुभ कर्म करो ! अशुभ कर्मो में सहयोग न दो ! कोई पाप कर्म न करो !
२. यही बौद्ध जीवन मार्ग है !
३. यदि आदमी शुभ कर्म करे ! तो इसे पुनः पुनः करना चाहिए ! उसी में चित्त लगाना चाहिए ! शुभ कर्मो का संचय सुखकर होता है !
४. भलाई के बारे में यह मत सोचो कि मै इसे प्राप्त न कर सकूंगा ! बूंद बूंद पानी करके घड़ा भर जाता है ! इसी प्रकार थोडा-थोडा करके बुद्धिमान आदमी बहुत शुभ कर्म कर सकता है !
५. जिस काम को करके आदमी को पछताना न पड़े और जिसके फल को वह आनंदित मन से भोग सके ,उस काम को करना अच्छा है !
६. जिस काम को करके आदमी को अनुताप न हो और जिसके फल को प्रफुल्लित मं से भोग सके ,उस काम को करना अच्छा है !
७. यदि आदमी शुभ कर्म करे ! तो इसे पुनः पुनः करना चाहिए ! उसे उसमे आनन्दित होना चाहिए !शुभ कर्म का करना आनन्ददायक होता है !
८. अच्छे आदमी को भी बुरे दिन देखने पड़ जाते है ,जब तक उसे अपने शुभ कर्मो का फल मिलना आरम्भ नहीं होता ; लेकिन जब उसे अपने शुभ कर्मो का फल मिलना आरम्भ होता है ,तब अच्छा आदमी अच्छे दिन देखता है !
९. भलाई के बारे में यह कभी न सोचे कि मै इसे प्राप्त न कर सकूंगा ! जिस प्रकार बूंद बूंद पानी करके घड़ा भर जाता है ,उसी प्रकार थोडा-थोडा करके भी भला आदमी भलाई से भर जाता है !
१०. शील (सदाचार ) की सुगंध चन्दन, तगर तथा मल्लिका –सबकी सुगंध से बडकर है !
११. धुप और चन्दन की सुगंध कुछ ही दूर तक जाती है ,किन्तु शील की सुगंध बहुत दूर तक जाती है !
१२. बुराई के बारे में यझ न सोचे कि यह मुझ तक नही पहुचेगी !जिस प्रकार बूंद बूंद करके पानी का घड़ा भर जाता है ,इसी प्रकार थोडा-थोडा अशुभ कर्म भी बहुत हो जाते है !
१३. कोई भी ऐसा काम करना अच्छा नही ,जिसे करने से पछताना हो और जिस का फल अश्रु मुख होकर रोते हुए भोगना पड़े!
१४. यदि कोई आदमी दुष्ट मं से कुछ बोलता है या कोई काम करता है ,तो दुख: उसके पीछे-पीछे ऐसे ही हो लेता है ,जैसे गाडी का पहिया खीचने वाले (पशु)के पीछे पीछे !
१५. पाप कर्म न करें !अप्रमाद से बचें ! मिथ्या दृष्टी न रखे !
१६. शुभ कर्मो में अप्रमादी हो !बुरे विचारों का दमन करें !जो कोई शुभ कर्म को करने में ढील करता है ,उसका मन पाप में रमण करने लगता है !
१७. जो काम को करने के बाद पछताना पड़े , उसे करना अच्छा नहीं, जिसका फल अश्रु मुख होकर सेवन करना पड़ें!
१८. पापी भी सुख भोगता रहता है , जब तक उसका पाप कर्म नहीं पकता ,लेकिन जब उसका पाप कर्म पकता है, तब वह दुःख भोगता है !
१९. कोई आदमी बुराई को छोटा न समझे और दिल में यह न सोचे कि यह मुझ तक नही पहुच सकेगी ! पानी की बूंदों के गिरने से भी एक पानी का घड़ा भर जाता है ! इसी प्रकार थोडा थोडा पाप कर्म करने से भी मुर्ख आदमी पाप से भर जाता है !
२०. आदमी को शुभ कर्म करने में जल्दी करनी चाहिए और मं को बुराई से दूर रखना चाहिए !यदि आदमी शुभ कर्म को करने में ढील करता है तो उसका मन पाप में रमण करने में लग जाता है !
२१. यदि एक आदमी पाप करे ,तो वह बार बार न करे ! वह पाप में आनंद न माने ! पाप इकठ्ठा होकर दुःख देता है !
२२. कुशल कर्म करे ,अकुशल कर्म न करे ! कुशल कर्म करने वाला इस लोक में सुखपूर्वक रहता है !
२३. कामुकता से दुख पैदा होता है , कामुकता से भय पैदा होता है ! जो कामुकता से एकदम मुक्त है , उसे न दुःख है न भय !
२४. भूख सबसे बड़ा रोग है , संस्कार सबसे बड़ा दुःख है ! जो इस बात को जान लेता है ,उसके लिए निर्वाण साबसे बड़ा सुख है !
२५. स्वयं-कृत,स्वयं-उत्पन्न तथा स्वयं पोषित पाप कर्म ,करने वाले को ऐसे ही पीस डालता है ,जैसे वज्र मूल्यवान मणि को !
२६. जो आदमी अत्यंत दुशील होता है ,वह अपने आप को उस स्थिति में पहुचा देता है ,जहाँ उसका शत्रु उसे चाहता है ! ठीक वैसे ही जैसे अआकाश-बेल उस वृक्ष को ,जिसे वह घेरे रहती है !
२७. अकुशल कर्म तथा अहितकर कर्म करना आसान है ! कुशल कर्म तथा हितकर कर्म करना कठिन है !


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Post by Akash78 Tue Nov 29, 2011 4:50 pm

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२ लोभ तथा तृष्णा

१.लोभ और तृष्णा के वशीभूत न हो !
२. यही बौद्ध जीवन मार्ग है !
३.धन की वर्षा होने भी आदमी की कामना की पूर्ती नही होती ! बुद्धिमान आदमी जानता है कि,कामनाओं की पूर्ती में अल्प स्वाद है और दुख है!
४.वह दिव्य काम भोगो में आनंद नही मानता ! वह तृष्णा के क्षय में ही रत रहता है ! वह सम्यक सम्बुद्ध का श्रावक है !
५.लोभ से दुःख पैदा होता है ! लोभ से भय पैदा होता है ! जो लोभ से मुक्त है उसके लिए न दुःख है न भय है !
६.तृष्णा से दुःख पैदा होता है ,तृष्णा से भय पैदा होता है ! जो तृष्णा से मुक्त है उसके लिए न दुःख है न भय है !
७.जो अपने आपको घमंड के समर्पित कर देता है , जो जीवन के यथार्त उद्देश्य को भूलकर , काम भोगो के पीछे पड़ जाता है , वह बाद में ध्यानी की ओर इर्ष्या–भरी दृष्टि से देखता है !
८.आदमी किसी भी वस्तु के प्रति आसक्त न हो , वस्तु विशेष की हानि से दुःख होता है ! जिन्हें न किसी से प्रेम है न घृणा है वो बंधन मुक्त है !
९.काम भोग से दुःख होता है ,काम भोग से भय पैदा होता है , जो आसक्ति से मुक्त है ,उसे न दुःख है न भय है !
१०.आसक्ति से दुःख पैदा होता है , आसक्ति से भय पैदा होता है , जो आसक्ति से मुक्त है , उसे न दुःख है न भय है !
११. राग से दुःख पैदा होता है , राग से भय पैदा होता है ! जो राग से मुक्त है , उसे न दुःख है न भय है !
१२.लोभ से दुःख पैदा होता है , लोभ से भय पैदा होता है ! जो लोभ से मुक्त है , उसे न दुःख है न भय है !
१३. जो शीलवान है , जो प्रज्ञावान है , जो न्यायी है , जो सत्यवादी है , तथा जो अपने कर्तव्य को पूरा करता है – उससे लोग प्यार करते है !
१४.जो आदमी चिरकाल के बाद प्रवास से सकुशल लौटता है , उसके रिश्तेदार तथा मित्र उसका अभिनन्दन करते है !
१५.इसी प्रकार शुभ-कर्म करने वाले के गुण कर्म परलोक में उसका स्वागत करते है !


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Post by Akash78 Thu Dec 01, 2011 9:43 pm

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३.क्लेश और द्वेष
१.किसी को क्लेश मत दो,किसी को से द्वेष मत रखो !

२.यही बौद्ध जीवन मार्ग है .


३.क्या संसार में कोई आदमी इतना निर्दोष है कि ,उसे दोष नहीं दिया जा सकता ,जैसे शिक्षित घोडा चाबुक की मार की अपेक्षा नही रखता .


४.श्रद्धा ,शील ,वीर्य,समाधि,धम्म-विचय [सत्य की खोज ] , विद्या तथा आचरण
की पूर्णता तथा स्मृति[जागरूकता] से इस महान दुःख का अंत करो .


५.क्षमा सबसे बड़ा तप है ,निर्वाण सबसे बड़ा सुख है –ऐसा बुद्ध कहते है ! जो
दूसरों को आघात पहुचाए ,वो प्रवर्जित नही, जो दूसरों को पीड़ा न दे-वही
श्रमण है !


६.वाणी से बुरा वचन न बोलना ,किसी को कोई कष्ट न देना, विनयपूर्वक [नियमानुसार] संयत रहना –यही बुद्ध की देशना है .


७.न जीव हिंसा करो , न कराओ !


८.अपने लिए सुख चाहने वाला , जो सुख चाहने वाले प्राणियों को न कष्ट देता है और न जान से मारता है , वह सुख प्राप्त करेगा .


९.यदी एक टूटे भाजन की तरह तुम निःशब्द हो जाओ ,तो तुमने निर्वाण प्राप्त कर लिया ,तुम्हारा क्रोध से कोई सम्बन्ध नही !


१०.जो निर्दोष और अहानिकर व्यक्तियों को कष्ट देता है वह स्वयं कष्ट भोगता है .


११.चाहे वो अलंकृत हो , तो भी यदि उसकी चर्या विषय नही .....यदि वह शांत है
, दान्त है ,स्थिर –चित्त है ,ब्रम्हचारी है ,दूसरों के छिद्रान्वेषण नही
करता फिरता-वह सचमुच एक श्रमण है, एक भिक्षु है !


१२.क्या कोई आदमी लज्जा के मारे ही इतना संयत रहता है कि,उसे कोई कुछ कह न सके ,जैसे अच्छा घोडा चाबुक की अपेक्षा नही रखता ?


१३. यदि कोई आदमी किसी अहानिकर,शुद्ध और निर्दोष आदमी के विरुद्ध कुछ करता
है तो,उसकी बुराई आकर उसी आदमी पर पड़ती है ,ठीक वैसे ही जैसे हवा के
विरुद्ध फेकी हुई धूल फेकने वाले पर ही आकर पडती है !





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Post by Akash78 Thu Dec 01, 2011 9:48 pm

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४.क्रोध और शत्रुता

१. क्रोध न करो,!शत्रुता को भूल जाओ ! अपने शत्रुओ को मैत्री से जीत लो !
२.यही बौ
द्ध जीवन मार्ग है !
३.क्रोधाग्नि शांत होना ही चाहिए !
४.जो यह सोचता रहता है उसने मुझे गाली दी , उसने मेरे साथ बुरा व्यवहार
किया,उसने मुझे हरा दिया ,उसने मुझे लूट लिया ,उसका बैर कभी शांत नही होता !
५. जो ऐसे विचार नहीं रखता उसी का बैर शांत होता है !
६.शत्रु शत्रु की हानि करता है, घृणा करने वाला घृणा करने वाले की ,लेकिन अंत में यह किसकी हानि होती है ?
७.आदमी को चाहिए कि क्रोध को अक्रोध से जीते ,बुराई को बलाई से जीते , लोभी को उदारता से जीते ,और झूठे को सच्चाई से जीते !
८.सत्य बोले, क्रोध न् करे ,थोडा होने पर भी दे !
९. आदमी को चाहिए कि,क्रोध का त्याग कर
दे , मान को छोड़ दे ,सब बंधनों को तोड़ दे ,जो आदमी नाम-रूप में आसक्त
नहीहै,जो किसी भी चीज को मेरी नही समझता है,उसे कोई कष्ट नही होता !

१०.जो कोई उत्पन्न क्रोध को उसी प्रकार
रोक लेता है ,जैसे सारथी भ्रांत रथ को,उसे हि मैं [जीवन रथ का] सच्चा सारथी
कहता हूँ,शेष तो रस्सी पकड़ने वाले होते है !

११.जय से बैर पैदा होता है ! पराजित आदमी दुखी रहता है ! शांत आदमी जय-पराजय की चिंता छोडकर शुख्पूर्वक सोता है !
१२.कामाग्नि के समान आग नहीं, घृणा के सामान दुर्भाग्य नहीं ! उपादान-स्कंधो के समान दुःख नही, निर्वाण से बढकर सुख नही !

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Post by Akash78 Thu Dec 01, 2011 9:52 pm

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५मानव ,मन और मन के मैल


१.आदमी वही कुछ होता है ,जो कुछ उसका मन उसे बना देता है !
२.सन्मार्ग पर आगे बदने के लिए मन की साधना पहला कदम है !
३.बुद्ध जीवन मार्ग में यह मुख्य शिक्षा है !
४.हर बात में मन ही पूर्वगामी ,मन ही मुख्य है !
५.यदि कोई आदमी दुष्ट मन से कुछ बोलता है या करता है ,तो दुःख उसके पीछे
ऐसे ही होलेता है ,जैसे गाडी के पहिये गाडी खिचने वाले पशु के पीछे-पीछे !
६.यदि आदमी स्वच्छ मन से कुछ बोलता है या करता है ,तो सुख उसके पीछे ऐसे ही
हो लेता है,जैसे कभी न साथ छोड़ने वाली छाया आदमी के पीछे पीछे !
७.इस चंचल,अस्थिर,दुरक्ष ्य ,दुनिवार्य ,मन को मेघावी आदमी ऐसे ही सीधा करता है, जैसे बाण बनाने वाला बाण को !
८. जिस प्रकार पानी से बाहर स्थल पर फेकी हुई मछली तड़पती है ,उसी प्रकार मार के बंधन से मुक्त होता हुआ यह मन तडपता है !
९.जिसे काबू में रखना कठिन है ,जो चंचल है ,जो हमेशा ‘मौज’ही खोजता रहता है–ऐसे मन को काबू में रखना अच्छा है ! काबू में रहा हुआ मन सुख देने वाला होता है !
१०.अपने आप को एक द्वीप बनाओ ,परीश्रम करो ,जब तुम्हारे चित्त मलो का नाश हो जायेगा और तुम निर्दोष हो जाओगे ,तो तुम दिव्यभूमि को प्राप्त होओगे !
११.जिस प्रकार सुनार क्षण –क्षण करके ,थोडा –थोडा करके चांदी के मैल को दूरकर देता है ,उसी प्रकार बुद्दिमान आदमी को चाहिए कि, क्षण –क्षण करके
,थोडा –थोडा करके चित्त के मैल को दूर कर दे !
१२.जिस प्रकार लोहे से पैदा हुआ मोर्चा [जंग] लोहे को ही खा जाता है , उसी प्रकार पापी के अपने कर्म उसे दुर्गति तक ले जाते है !
१३. लेकिन सब मलो से भी बढकर मल है अविद्या !हे भिक्खुओ ! इस मल का त्याग कर निर्मल हो जाओ !
१४.जो आदमी कौवे की तरह निर्लज्ज है ,शरारती है ,दुस्साहसी है,दुष्ट है-उसके लिए जीवन सुकर है !
१५.लेकिन जो आदमी विनम्र है , सदैव पवित्रता की खोज में रहता है ,अनासक्त है ,शान्त है ,निर्मल है
,बुद्धिमुक्त है –ऐसे आदमी के लिए जीवन सुकर नहीं होता !
१६.-१७. जो आदमी जीव हिंसा करता है ,जो झूठ बोलता है,जो चोरी करता है, जो परस्त्री गमन करता है,
जो
आदमी शराब आदि नशीली चीजे पीता है-वह यही इसी संसार में अपनी कब्र अपने आप खोदता है !
१८.हे मनुष्य ! इस बात को जान ले कि असंयत की हालत अच्छी नही रहती ! सावधान रह कि ,लोभ और पाप-कर्म तुम्हे
चिरकाल तक दुःख में ही न डाले रहे !

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Post by KULDEEP BIRWAL Mon Oct 21, 2013 2:10 pm

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Post by KULDEEP BIRWAL Tue Oct 22, 2013 8:02 pm

एक समय बुद्ध पांच सौ भिक्षुओं के साथ भ्रमण करते हुए आलवी नगर पहुंचे। वहां के निवासियों ने बुद्ध का बड़ा आदर-सत्कार किया। एक दिन उन्होंने बुद्ध को भिक्षु संघ सहित भोजन के लिए आमंत्रित किया। नगर का एक गरीब किसान भी बुद्ध के नगर में आने की बात सुनकर, उनके पास धर्म का उपदेश सुनने जाना चाहता था, किंतु सुबह ही उसका एक बैल घास चरते-चरते घर से दूर चला गया। किसान यह देखकर परेशान हो गया। वह बिना कुछ खाए जल्दी से उसे खोजने निकल पड़ा, ताकि बैल घर लाने के बाद, उपदेश सुनने बुद्ध के पास जा सके।

दोपहर हो गई। अंतत: अपना बैल उसे एक तालाब के पास चरता हुआ मिला। वह बड़ा खुश हुआ। उसे घर ला कर दूसरे मवेशियों के साथ बांधने के बाद वह झटपट धर्म-उपदेश सुनने चल पड़ा। सभा में उसने बुद्ध की वंदना की और एक ओर बैठ गया। लेकिन भूख और थकावट उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। इसी कारण उपदेश सुनने में भी उसका मन नहीं लग रहा था।

बुद्ध किसान का चेहरा देखकर समझ गए कि वह बहुत भूखा है। उन्होंने तुरंत अपने एक भिक्षु को बुला कर कहा, इस किसान को भोजन खिलाओ। उसने किसान को पेट भर भोजन कराया। उसके भोजन कर लेने के बाद ही बुद्ध ने अपना उपदेश पुन: प्रारंभ किया। उपदेश सुनकर उसे परम ज्ञान की प्राप्ति हुई।
किसान के जाने के बाद भिक्षु आपस में चर्चा करने लगे, भगवान के कार्य देखो, आज उन्होंने एक गरीब किसान को देखते ही भोजन कराया। बुद्ध ने उनकी बातें सुनकर कहा, 'हां भिक्षुओं! वह बहुत भूखा था। भूख का सताया हुआ आदमी धर्म को नहीं समझ सकता। इसलिए पहले मैंने उसे भोजन करवाया।' बुद्ध ने कहा, 'भिक्षुओं! भूख सबसे बड़ा रोग है।'

बुद्धं सरणं गच्छामि l
धम्मं सरणं गच्छामि l
संघं सरणं गच्छामि l

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Post by KULDEEP BIRWAL Sun Nov 03, 2013 1:20 pm

एक बार बुद्ध से मलुक्यपुत्र ने पूछा, भगवन आपने आज तक यह नहीं बताया कि मृत्यु के उपरान्त क्या होता है? उसकी बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराये, फिर उन्होंने उससे पूछा, पहले मेरी एक बात का जबाव दो. अगर कोई व्यक्ति कहीं जा रहा हो और अचानक कहीं से आकर उसके शरीर में एक विषबुझा बाण घुस जाये तो उसे क्या करना चाहिए ? पहले शरीर में घुसे बाण को हटाना ठीक रहेगा या फिर यह देखना कि बाण किधर से आया है और किसे लक्ष्य कर मारा गया है? मलुक्यपुत्र ने कहा, पहले तो शरीर में घुसे बाण को तुरंत निकालना चाहिए, अन्यथा विष पूरे शरीर में फ़ैल जायेगा. बुद्ध ने कहा, बिल्कुल ठीक कहा तुमने, अब यह बताओ कि पहले इस जीवन के दुखों के निवारण का उपाय किया जाये या मृत्यु के बाद की बातों के बारे में सोचा जाये. मलुक्य पुत्र अब समझ चुका था और उसकी जिज्ञासा शांत हो गई थी. बुद्धं नमामि !
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