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पूनम दहिया जी की कवितायें
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पूनम दहिया जी की कवितायें
क्यों कहते हो
भूलूं तुमको
क्यों ना करूँ मै तुमको याद
तुम को ही तो सोंपा जीवन
फिर तुमसे कैसी फरियाद ?
तुम हो आशा मै विश्वास
तुम हो जीवन मै हूँ सांस
फिर कैसा जीवन बिन तुमाहरे
संबल हो तुम ,हो ,अहसास हमारे
फिर कैसे भूलूं ,कैसे रोकूँ
जब है पल हर क्षण तुम तु म्हरी याद
भूलूं तुमको
क्यों ना करूँ मै तुमको याद
तुम को ही तो सोंपा जीवन
फिर तुमसे कैसी फरियाद ?
तुम हो आशा मै विश्वास
तुम हो जीवन मै हूँ सांस
फिर कैसा जीवन बिन तुमाहरे
संबल हो तुम ,हो ,अहसास हमारे
फिर कैसे भूलूं ,कैसे रोकूँ
जब है पल हर क्षण तुम तु म्हरी याद
Re: पूनम दहिया जी की कवितायें
क्या इसी दिन के लिए
ली थी बाबा ने दीक्षा
दी थी संघर्ष शिक्षित
बनने की शिक्षा ..
कि करें अपने ही अपनों कि काट
ले हिस्सों में खुद अपनों को बाँट
कि होके फूट का शिकार ,,
हम फिर से बिखर जाएँ
और शोषण को सहते ,,
बस देखते ही जाएँ ..
क्यों मनुवादियों की चाल
में फिर फंस रहें हैं हम ..
फिर से पतन कि गर्त में
क्यों धंस रहें हैं हम ..
क्यों थाम एक संगठन का हाथ
हम नहीं चलते ,,
क्यों अपनें सपनें गैरों
कि आँखों में हैं पलतें
आओ दिखा दो एकता
कि हम एक हैं सारे ..
ना होगा पोषण हमारा अब
गैरों के सहारे ..
आओ करैं मिलकर संगठित
रहने कि प्रतिज्ञा ..
कि नहीं चाहिए अब खैरात कोई
ना ..कोई भिक्षा ..
ली थी बाबा ने दीक्षा
दी थी संघर्ष शिक्षित
बनने की शिक्षा ..
कि करें अपने ही अपनों कि काट
ले हिस्सों में खुद अपनों को बाँट
कि होके फूट का शिकार ,,
हम फिर से बिखर जाएँ
और शोषण को सहते ,,
बस देखते ही जाएँ ..
क्यों मनुवादियों की चाल
में फिर फंस रहें हैं हम ..
फिर से पतन कि गर्त में
क्यों धंस रहें हैं हम ..
क्यों थाम एक संगठन का हाथ
हम नहीं चलते ,,
क्यों अपनें सपनें गैरों
कि आँखों में हैं पलतें
आओ दिखा दो एकता
कि हम एक हैं सारे ..
ना होगा पोषण हमारा अब
गैरों के सहारे ..
आओ करैं मिलकर संगठित
रहने कि प्रतिज्ञा ..
कि नहीं चाहिए अब खैरात कोई
ना ..कोई भिक्षा ..
Re: पूनम दहिया जी की कवितायें
अनजाने मे जाना तुमको
अनजाने मे ही पाया
अनजाने मे स्वीकार तुमको
अनजाने मे ही गँवाया
अनजाने मे ही पहचाना तुमको
अनजाने मे खोया
अनजाने मे हंसा ,साथ मे
अनजाने मे रोया
अनजाने मे काटा मैंने
दुःख अनजाने मे जो बोया
पर क्या है जो तुं है अनजाना
माना, मैंने तुझे ना जाना
फिर भी देखो अनजाने मे मैंने साथ निभाया
तू मुझ को और मे तुझ को क्या हुआ जो जान ना पाया
अनजाने मे ही पाया
अनजाने मे स्वीकार तुमको
अनजाने मे ही गँवाया
अनजाने मे ही पहचाना तुमको
अनजाने मे खोया
अनजाने मे हंसा ,साथ मे
अनजाने मे रोया
अनजाने मे काटा मैंने
दुःख अनजाने मे जो बोया
पर क्या है जो तुं है अनजाना
माना, मैंने तुझे ना जाना
फिर भी देखो अनजाने मे मैंने साथ निभाया
तू मुझ को और मे तुझ को क्या हुआ जो जान ना पाया
Re: पूनम दहिया जी की कवितायें
कहाँ खो गई वो
बचपन की यादें
वो प्यारे से सपने
वो मीठी से यादें
मिट्टी के वो घरोंदे
लुका छिपी का वो खेल
वो झुला ,नाव कागज की
वो बिना इंजन की रेल
वो हर त्यौहार पर
नयी फ्राक पहन इतराना
वो छुप छुप के मिठाइयों
से मुँह भर के आना
और हर जिद मनवाने को
मुँह मेरा फुलाना ...
और थोड़े से मनुहार से
वो मेरा मान जाना
माँ का पकड़ कर आँचल
रसोई तक वो जाना
और बारिश की बूँद पड़ते ही
फरमाईशें मनवाना ..
वो बहाना पेट दर्द का
करके ,मार लेना छुट्टी
वो १ रूपये के सिक्के
से बांध लेना मुट्ठी
अमराइयों में कच्ची अमियों
को खाना ......
गुड्डे की शादी ,और
बारात ले कर जाना
वो माँ की प्यारी थपकी
वो माँ की मीठी लोरी
दोपहर को पतंग उडाने
छत पे जाना चोरी -चोरी
वो अब्दुल .वो लिजा
वो बिरजू वो अमरजीत
ना भेद था कोई ..
ना कोई हार जीत ..
वो जाना मंदिर ,गुरुद्वारों में
लंगर ,प्रसाद खाने के बहाने
वो मस्जिद में जा कर
सुनना ..लम्बी अजानें
अब खो गयीं वो बातें
बढ़ी भेदों की घातें
उलझी हूँ जाति धर्म में
स्वयं हित स्वार्थ कर्म में
खो गया भोलापन मेरा
जब से बढाया चिंतन
खो सा गया वो बचपन
हुई देखो में अकिंचन
गुम सा हुआ बचपन
कहीं सिक्कों के फेर में
खोजती हूँ यादें अब
चिंतन के ढेर में
टूटे से शब्द हुए अब तो
छूटे से हुई वादें ..
छूट
ा बचपन ,छूटी यादें ..बचपन की यादें
वो प्यारे से सपने
वो मीठी से यादें
मिट्टी के वो घरोंदे
लुका छिपी का वो खेल
वो झुला ,नाव कागज की
वो बिना इंजन की रेल
वो हर त्यौहार पर
नयी फ्राक पहन इतराना
वो छुप छुप के मिठाइयों
से मुँह भर के आना
और हर जिद मनवाने को
मुँह मेरा फुलाना ...
और थोड़े से मनुहार से
वो मेरा मान जाना
माँ का पकड़ कर आँचल
रसोई तक वो जाना
और बारिश की बूँद पड़ते ही
फरमाईशें मनवाना ..
वो बहाना पेट दर्द का
करके ,मार लेना छुट्टी
वो १ रूपये के सिक्के
से बांध लेना मुट्ठी
अमराइयों में कच्ची अमियों
को खाना ......
गुड्डे की शादी ,और
बारात ले कर जाना
वो माँ की प्यारी थपकी
वो माँ की मीठी लोरी
दोपहर को पतंग उडाने
छत पे जाना चोरी -चोरी
वो अब्दुल .वो लिजा
वो बिरजू वो अमरजीत
ना भेद था कोई ..
ना कोई हार जीत ..
वो जाना मंदिर ,गुरुद्वारों में
लंगर ,प्रसाद खाने के बहाने
वो मस्जिद में जा कर
सुनना ..लम्बी अजानें
अब खो गयीं वो बातें
बढ़ी भेदों की घातें
उलझी हूँ जाति धर्म में
स्वयं हित स्वार्थ कर्म में
खो गया भोलापन मेरा
जब से बढाया चिंतन
खो सा गया वो बचपन
हुई देखो में अकिंचन
गुम सा हुआ बचपन
कहीं सिक्कों के फेर में
खोजती हूँ यादें अब
चिंतन के ढेर में
टूटे से शब्द हुए अब तो
छूटे से हुई वादें ..
छूट
Re: पूनम दहिया जी की कवितायें
दुनिया एक बाज़ार
बेचने वाले मुट्ठी भर
और खरीदने वाले हज़ार
बिकता अपनापन ,बिकती यहाँ ममता
बिकता स्नेह और प्यार ....
वादों की यहाँ लगती बोली
आशा लिए खड़ी खाली झोली
त्याग समर्पण की बात करैं क्या
बिकता सच भी ,होकर लाचार
लज्जित हो रहा देखो कर्म
समझे ना कोई किसी का मर्म
धर्म की देखो देकर दुहाई
धर्मात्मा ही देखो कर रहे दुराचार
सिद्धांत उसूल सब हुए बेमानी
झूठे चेहरे कह रहे झूठी कहानी
सहने वाला सहे जा रहा बस
अत्याचारी का अत्याचार
श्रद्धा की कीमत कोई ना जाने
विश्वासों को ना ये पहचानें
ईमान बिक रहा भाव कौड़ी के
और भ्रष्ट के दाम हज़ारबेचने वाले मुट्ठी भर
और खरीदने वाले हज़ार
बिकता अपनापन ,बिकती यहाँ ममता
बिकता स्नेह और प्यार ....
वादों की यहाँ लगती बोली
आशा लिए खड़ी खाली झोली
त्याग समर्पण की बात करैं क्या
बिकता सच भी ,होकर लाचार
लज्जित हो रहा देखो कर्म
समझे ना कोई किसी का मर्म
धर्म की देखो देकर दुहाई
धर्मात्मा ही देखो कर रहे दुराचार
सिद्धांत उसूल सब हुए बेमानी
झूठे चेहरे कह रहे झूठी कहानी
सहने वाला सहे जा रहा बस
अत्याचारी का अत्याचार
श्रद्धा की कीमत कोई ना जाने
विश्वासों को ना ये पहचानें
ईमान बिक रहा भाव कौड़ी के
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