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मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
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Re: मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
फल और सब्जी की दुकान लगाने वाले एक लड़के को वसूली के पचास रुपए नहीं देने पर सरेबाजार ना सिर्फ जमकर पीटा, बल्कि दो सिपाहियों ने उसे सड़क पर लिटा कर सीने पर मोटर साइकिल भी चढ़ा दी।
ये तस्वीर इलाहाबाद के रामबाग रेलवे स्टेशन के गेट नंबर एक के ...सामने की है। दिन का उजाला है और आस-पास भीड़ भी है, लेकिन वर्दी वाले गुंडों को किसी का डर नहीं।
18 अगस्त की सुबह स्टेशन के बाहर फल और सब्जी का ठेला लगाने वाले रोहित केसरवानी को पुलिस के दो सिपाहियों को वसूली का पचास रुपया ना देना महंगा पड़ा। बेचू यादव और एक-दूसरे सिपाही ने पैसा ना देने और उनसे उलझने पर पहले रोहित को लात घूंसों और लाठी से जमकर पीटा फिर उसका ठेला पलट दिया।
जब रोहित बेसुध होकर ज़मीन पर गिर पड़ा सिपाहियों ने उसके ऊपर मोटर साइकिल चढ़ा दी। मौके से गुजर रहे मनीष राजपूत का कहना है कि उन्होंने जब हिम्मत कर घटना की तस्वीर अपने मोबाइल से निकाल ली तो पुलिस वालों ने मनीष को भी धमकाया। मनीष के मुताबिक इस दौरान एक स्थानीय इंस्पेक्टर दल-बल के साथ पहुंचे। मनीष को धमकाया और पुलिस के साथ कापरेट करने की सलाह दी।
पुलिस के हांथो सरे बाज़ार पिटने और सीने पर मोटर साइकिल चढ़ाये जाने के बाद रोहित बेहद भयभीत है और पुलिस के खिलाफ कुछ भी बोलने से बच रहा है। उस का कहना है मेरी गुज़ारिश है कि मुझे और मेरे परिवार को चैन से जीने दिया जाए।
Re: मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
गोरखपुर के पिपराइच के बनकटवा गांव में भूत भगाने के नाम पर बीमार कुंवारी कन्याओं पर तरह तरह से अत्याचार किए जाते हैं। जितनी तरह के भूत होंगे, उतनी तरह के अत्याचार भी। हर साल की तरह इस साल भी भूतों का मेला चल रहा है। यहां भूत भगाने के नाम पर बीमार कन्याओं पर कई तरह के अत्याचार किये जाते हैं। पूरा माहौल ऐसा हो जाता है कि किसी भी अपरिचित के डर के मारे रोंगटे खड़े हो जायेंगे। यह सब कुछ इन लड़कियों के परिवारों, ख़ासतौर पर उनकी माताओं की सहमति से होता है।
Re: मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
उत्तर प्रदेश में भारतीय किसान मोर्चा की पंचायत ने तुगलकी फरमान जारी किया है कि जाट बिरादरी की कोई युवती अगर जींस पहने या मोबाइल पर बात करते पाई गई तो संबंधित गांव के प्रधान पर बीस हजार रुपये जुर्माना होगा।
ढिकौली गांव में हुई पंचायत को संबोधित करते हुए मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मन्नूलाल चौधरी ने कहा कि बदलते परिवेश में बहू-बेटियों की आन और शान को बचाए रखना है। जींस और मोबाइल के बढ़ते चलन से बेटियों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। आह्वान किया कि जाट बिरादरी की युवतियां जींस न पहनें और न ही मोबाइल का इस्तेमाल करें। पंचायत में क्षेत्र के दर्जनों गांवों के गणमान्य लोगों ने हिस्सा लिया।
ढिकौली गांव में हुई पंचायत को संबोधित करते हुए मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मन्नूलाल चौधरी ने कहा कि बदलते परिवेश में बहू-बेटियों की आन और शान को बचाए रखना है। जींस और मोबाइल के बढ़ते चलन से बेटियों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। आह्वान किया कि जाट बिरादरी की युवतियां जींस न पहनें और न ही मोबाइल का इस्तेमाल करें। पंचायत में क्षेत्र के दर्जनों गांवों के गणमान्य लोगों ने हिस्सा लिया।
Re: मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
हर रेप जघन्य है, अपराध है, दंडनीय है और निंदनीय है। लेकिन क्या हर रेप?
अगर ऐसा होता तो मीडिया में उत्तर प्रदेश में होने वाले रेप को लेकर कवरेज का जो उत्साह है, वह दिल्ली में होने वाली घटनाओं को लेकर क्यों नहीं दिखता। इसे आज ही के एक उदाहरण से देखिए।
देश के सबसे प्रतिष्ठित और संतुलित आदि माने जाने वाले अखबार द हिंदू में 5 जुलाई को रेप की दो खबरें हैं। पहली खबर दिल्ली में कार में एक नाबालिक लड़के के सामूहिक बलात्कार की है। दूसरी खबर रायबरेली में 22 वर्ष की एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की है।
पत्रकारिता में निकटता यानी प्रोक्सिमिटी का सिद्धांत काम करता है, जिसके मुताबिक किसी खबर का न्यूज वैल्यू तय करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जो पाठक और दर्शक हैं, उससे घटना की दूरी कितनी है। इसी आधार पर स्थानीय खबरों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। आपके अखबार में अगर 2 से 4 पन्ने लोकल खबरों के हैं तो वह प्रोक्सिमिटी के कारण ही है। पाठक और दर्शक की ज्यादा दिलचस्पी आस पास की खबरों में होती है। ऐसा न होता तो दिल्ली के अखबार की देश भर में बिकते।
अब इन दो खबरों- रायबरेली और दिल्ली - के द हिंदू में कवरेज का फर्क देखिए।
1. रायबरेली की घटना पहले पन्ने पर है, दिल्ली में रेप की खबर तीसरे पन्ने पर है। द हिंदू ने रायबरेली की खबर को देश की सबसे बड़ी पांच खबरों में मानते हुए उसे पहले पन्ने पर जगह दी है।
2. रायबरेली की घटना दो कॉलम में है। दिल्ली की घटना सिंगल कॉलम में संक्षेप में है।
3. रायबरेली की खबर का शीर्षक -Woman gang-raped in Rae Bareli, जबकि दिल्ली की घटना का शीर्षक है-girl alleges gang-rape.
4. रायबरेली की खबर को पढ़ेंगे तो पहली लाइन में ही लिखा है- A 22-year-old woman was allegedly gang-raped by four youths at Unchahar in Rae Bareli district on Sunday
5. यानी दोनों खबरें बलात्कार के आरोप की है। लेकिन आरोप वाली बात दिल्ली की खबर के शीर्षक में है। रायबेरली की खबर में अखबार का शीर्षक इस अंदाज में है मानो बलात्कार की पुष्टि हो गई है,जबकि दिल्ली की खबर का शीर्षक बताता है कि लड़की ने सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया है।
6. दिल्ली की खबर को 6.5 कॉलम सेंटीमीटर जगह दी गई है, जबकि रायबरेली की खबर को बड़ा बनाने के लिए उसमें मुजफ्फरनगर की एक ओनर किलिंग की खबर को जोड़ा गया है और इस तरह रायबरेली की खबर को 22 कॉलम सेंटीमीटर का बनाया गया है।
7. रायबरेली की खबर को विश्वसनीयता देने के लिए इसके साथ स्पेशल कॉरेसपोंडेंट नाम जोड़ा गया है, जबकि दिल्ली की खबर संक्षेप में है, जिसमें रिपोर्टर का जिक्र तक नहीं है।
तो क्या अब भी आप कहेंगे कि मीडिया के लिए रेप की हर खबर का बराबर महत्व है।
अगर ऐसा होता तो मीडिया में उत्तर प्रदेश में होने वाले रेप को लेकर कवरेज का जो उत्साह है, वह दिल्ली में होने वाली घटनाओं को लेकर क्यों नहीं दिखता। इसे आज ही के एक उदाहरण से देखिए।
देश के सबसे प्रतिष्ठित और संतुलित आदि माने जाने वाले अखबार द हिंदू में 5 जुलाई को रेप की दो खबरें हैं। पहली खबर दिल्ली में कार में एक नाबालिक लड़के के सामूहिक बलात्कार की है। दूसरी खबर रायबरेली में 22 वर्ष की एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की है।
पत्रकारिता में निकटता यानी प्रोक्सिमिटी का सिद्धांत काम करता है, जिसके मुताबिक किसी खबर का न्यूज वैल्यू तय करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि जो पाठक और दर्शक हैं, उससे घटना की दूरी कितनी है। इसी आधार पर स्थानीय खबरों को ज्यादा महत्व दिया जाता है। आपके अखबार में अगर 2 से 4 पन्ने लोकल खबरों के हैं तो वह प्रोक्सिमिटी के कारण ही है। पाठक और दर्शक की ज्यादा दिलचस्पी आस पास की खबरों में होती है। ऐसा न होता तो दिल्ली के अखबार की देश भर में बिकते।
अब इन दो खबरों- रायबरेली और दिल्ली - के द हिंदू में कवरेज का फर्क देखिए।
1. रायबरेली की घटना पहले पन्ने पर है, दिल्ली में रेप की खबर तीसरे पन्ने पर है। द हिंदू ने रायबरेली की खबर को देश की सबसे बड़ी पांच खबरों में मानते हुए उसे पहले पन्ने पर जगह दी है।
2. रायबरेली की घटना दो कॉलम में है। दिल्ली की घटना सिंगल कॉलम में संक्षेप में है।
3. रायबरेली की खबर का शीर्षक -Woman gang-raped in Rae Bareli, जबकि दिल्ली की घटना का शीर्षक है-girl alleges gang-rape.
4. रायबरेली की खबर को पढ़ेंगे तो पहली लाइन में ही लिखा है- A 22-year-old woman was allegedly gang-raped by four youths at Unchahar in Rae Bareli district on Sunday
5. यानी दोनों खबरें बलात्कार के आरोप की है। लेकिन आरोप वाली बात दिल्ली की खबर के शीर्षक में है। रायबेरली की खबर में अखबार का शीर्षक इस अंदाज में है मानो बलात्कार की पुष्टि हो गई है,जबकि दिल्ली की खबर का शीर्षक बताता है कि लड़की ने सामूहिक बलात्कार का आरोप लगाया है।
6. दिल्ली की खबर को 6.5 कॉलम सेंटीमीटर जगह दी गई है, जबकि रायबरेली की खबर को बड़ा बनाने के लिए उसमें मुजफ्फरनगर की एक ओनर किलिंग की खबर को जोड़ा गया है और इस तरह रायबरेली की खबर को 22 कॉलम सेंटीमीटर का बनाया गया है।
7. रायबरेली की खबर को विश्वसनीयता देने के लिए इसके साथ स्पेशल कॉरेसपोंडेंट नाम जोड़ा गया है, जबकि दिल्ली की खबर संक्षेप में है, जिसमें रिपोर्टर का जिक्र तक नहीं है।
तो क्या अब भी आप कहेंगे कि मीडिया के लिए रेप की हर खबर का बराबर महत्व है।
Re: मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
तिरुअनंतपुरमके भगवान पद्मनाभ मंदिर में मिले खजाने से सभी ताज्जुब में हैं। जानकारों के मुताबिक खज़ाने की खोज करने वाले लोगों की नजर में यह खजाना अब तक मिले सभी खज़ानों में शायद सबसे ज्यादा कीमत का होगा। देश के अन्य बड़े और प्रसिद्ध मंदिरों की संपत्ति पर एक नजर—
शिरडी साईं बाबा मंदिर निवेश- 4 अरब 27 करोड़ गहने-जवाहरात : 32.24 करोड़ 2009-10 में आय : 1 अरब 65 करोड़ आय के स्रोत : किराया, बैंक जमाओं से ब्याज, निवेश और दान
माता वैष्णो देवी, जम्मू रोजाना की आय : तकरीबन 40 करोड़ सालाना आय : 500 करोड़
गुरुवयूर कृष्ण मंदिर, केरल घोषित संपत्ति : 125 करोड़ की एफडी सालाना आय : 2.5 करोड़ रुपए
सिद्धि विनायक मंदिर, मुंबई सालाना आय : 46 करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट : 125 करोड़ रुपए
तिरुपति बालाजी फिक्स्ड डिपॉजिट : 1000 करोड़ से ज्यादा (विभिन्न बैंकों में)
सालाना आय : 600 करोड़ रुपए से ज्यादा
हुंडियों से आय- 75 लाख प्रतिदिन
खास मौकों पर प्रति दिन आय : 1.8 करोड़ रुपए तक
50 हजार श्रद्धालु हर दिन, खास मौकों पर 4.5 लाख तक
खास: 1750 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी ने हर साल 25000 पाउंड मंदिर से कमाए।
बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं ने हीरों से जड़ा 16 किलो का स्वर्ण मुकुट चढ़ाया था जिसकी कीमत तकरीबन 15 करोड़ थी।
शिरडी साईं बाबा मंदिर निवेश- 4 अरब 27 करोड़ गहने-जवाहरात : 32.24 करोड़ 2009-10 में आय : 1 अरब 65 करोड़ आय के स्रोत : किराया, बैंक जमाओं से ब्याज, निवेश और दान
माता वैष्णो देवी, जम्मू रोजाना की आय : तकरीबन 40 करोड़ सालाना आय : 500 करोड़
गुरुवयूर कृष्ण मंदिर, केरल घोषित संपत्ति : 125 करोड़ की एफडी सालाना आय : 2.5 करोड़ रुपए
सिद्धि विनायक मंदिर, मुंबई सालाना आय : 46 करोड़ रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट : 125 करोड़ रुपए
तिरुपति बालाजी फिक्स्ड डिपॉजिट : 1000 करोड़ से ज्यादा (विभिन्न बैंकों में)
सालाना आय : 600 करोड़ रुपए से ज्यादा
हुंडियों से आय- 75 लाख प्रतिदिन
खास मौकों पर प्रति दिन आय : 1.8 करोड़ रुपए तक
50 हजार श्रद्धालु हर दिन, खास मौकों पर 4.5 लाख तक
खास: 1750 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी ने हर साल 25000 पाउंड मंदिर से कमाए।
बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं ने हीरों से जड़ा 16 किलो का स्वर्ण मुकुट चढ़ाया था जिसकी कीमत तकरीबन 15 करोड़ थी।
Re: मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
भारतीय समाज का यह षड्यंत्र काल है। एम्स में एसिस्टेंट प्रोफेसर पोस्ट के लिए विज्ञापन निकला है। 103 पोस्ट भरे जाने हैं। एससी के लिए 10 पोस्ट और एसटी के लिए दो पोस्ट रखे गए हैं। यह कैसा जातिवादी गणित हैं। 22.5% का कोटा संविधान देता है। यहां 12% दे रहे हैं।
http://www.aiims.edu/aiims/events/recruitment/finaladvertisement.pdf
www.aiims.edu
http://www.aiims.edu/aiims/events/recruitment/finaladvertisement.pdf
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Re: मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
केरल तिरूअनंतपुर से एक खास खबर है कि ‘‘दलित रिटायर हुआ तो रूम को गोमूत्र से धोया’’ जिसे इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिण्ट मीडिया ने दबा दिया और इसे प्रमुखता से प्रकाशित या प्रसारित करने लायक ही नहीं समझा. कारण कोई भी समझ सकता है. मीडिया बिकाऊ और ऐसी खबरों को ही महत्व देता है जो उसके हितों के अनुकूल हों, दलितों के अपमान की खबर के प्रकाशन या प्रसारण से मीडिया को क्या मिलने वाला है?
शायद इसीलिये मीडिया ने इस खबर को दबा दिया या बहुत ही हल्के से प्रकाशित या प्रसारित करके अपने फर्ज की अदायगी कर ली, लेकिन यह मामला दबने वाला नहीं हैं. खबर क्या है पाठक स्वयं पढ़कर समझें. खबर यह है कि देश के सामाजिक दृष्टि से पिछड़े माने जाने वाले राज्यों में किसी दलित अधिकारी का अपमान हो जाए तो यह लोगों को चौंकाता नहीं है, लेकिन सबसे शिक्षित और विकसित केरल राज्य में ऐसा होना हैरान करता है. यह सोचने को विवश करता है कि सर्वाधिक शिक्षित राज्य के लोगों को प्रदान की गयी शिक्षा कितनी सही है?
खबर है कि केरल राज्य के तिरूअनंतपुरम में एक दलित अधिकारी के सेवानिवृत्त होने के बाद उसकी जगह आए उच्च जातीय अधिकारी ने उसके कक्ष और फर्नीचर को शुद्ध करने के लिए गोमूत्र का छिड़काव करवाया. दलित वर्ग के एके रामकृष्णन 31 मार्च को पंजीयन महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. उन्होंने उक्त बातों का पता लगने पर मानव अधिकार आयोग को लिखी अपनी शिकायत में कहा है कि उनके पूर्ववर्ती कार्यालय के कुछ कर्मचारियों ने मेज, कुर्सी और यहां तक कि कार्यालय की कार के अंदर गोमूत्र छिड़का है. इस घटना की जांच की मांग करते हुए उन्होंने मानव अधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया है.
रामकृष्णन ने कहा, ''कार्यालय और कार का शुद्धिकरण इसलिए किया गया, क्योंकि वह अनुसूचित जाति (दलित वर्ग) से हैं और यह उच्च जातीय व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किया गया उनके मानव अधिकार एवं नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों का खुला उल्लंघन है.'' दलित वर्ग के एके रामकृष्णन की याचिका के आधार पर मानव अधिकार आयोग ने मामला दर्ज कर राज्य सरकार के कर-सचिव को नोटिस भेजा है. इसका जवाब सात मई तक देना है.
दलित वर्ग के एके रामकृष्णन का कहना है, ''मैं इस मामले को सिर्फ व्यक्तिगत अपमान के तौर पर नहीं ले रहा हूँ. यह सामाजिक रूप से वंचित समूचे तबके का अपमान है. यदि एक सरकारी विभाग में शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है तो निचले पायदान पर रहने वाले आम लोगों की क्या हालत होगी?'' उन्होंने बताया कि पंजीयन महानिदेशक के पद पर पिछले पांच साल का उनका अनुभव बहुत खराब रहा है.
इस मामले में सबसे बड़ा और अहम सवाल तो यह है कि नये पदस्थ उच्च जातीय अधिकारी को गौ-मूत्र से कार्यालय की सफाई करने के लिये कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? क्योंकि उन्होंने तो वही किया जो उन्हें उसके धर्म-उपदेशकों ने सिखाया या उन्हें जो संस्कार प्रदान किये गये. ऐसे में केवल ऐसे अधिकारी के खिलाफ जॉंच करने, नोटिस देने या उसे दोषी पाये जाने पर दण्डित करने या सजा देने से भी बात बनने वाली नहीं है.
सबसे बड़ी जरूरत तो उस कुसंस्कृति, रुग्ण मानसिकता एवं मानव-मानव में भेद पैदा करने वाली धर्म-नीति को प्रतिबन्धित करने की है, जो गौ-मूत्र को दलित से अधिक पवित्र मानना सिखाती है और गौ-मूत्र के जरिये सम्पूर्ण दलित वर्ग को अपमानित करने में अपने आप को सर्वोच्च मानती है. इस प्रकार की नीति को रोके बिना कोई भी राज्य कितना भी शिक्षित क्यों न हो, अशिक्षित, हिंसक और अमानवीय लोगों का आदिम राज्य ही कहलायेगा.
देश के नंबर वन हिंदी मीडिया पोर्टल bhadas4media.com से साभार
शायद इसीलिये मीडिया ने इस खबर को दबा दिया या बहुत ही हल्के से प्रकाशित या प्रसारित करके अपने फर्ज की अदायगी कर ली, लेकिन यह मामला दबने वाला नहीं हैं. खबर क्या है पाठक स्वयं पढ़कर समझें. खबर यह है कि देश के सामाजिक दृष्टि से पिछड़े माने जाने वाले राज्यों में किसी दलित अधिकारी का अपमान हो जाए तो यह लोगों को चौंकाता नहीं है, लेकिन सबसे शिक्षित और विकसित केरल राज्य में ऐसा होना हैरान करता है. यह सोचने को विवश करता है कि सर्वाधिक शिक्षित राज्य के लोगों को प्रदान की गयी शिक्षा कितनी सही है?
खबर है कि केरल राज्य के तिरूअनंतपुरम में एक दलित अधिकारी के सेवानिवृत्त होने के बाद उसकी जगह आए उच्च जातीय अधिकारी ने उसके कक्ष और फर्नीचर को शुद्ध करने के लिए गोमूत्र का छिड़काव करवाया. दलित वर्ग के एके रामकृष्णन 31 मार्च को पंजीयन महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. उन्होंने उक्त बातों का पता लगने पर मानव अधिकार आयोग को लिखी अपनी शिकायत में कहा है कि उनके पूर्ववर्ती कार्यालय के कुछ कर्मचारियों ने मेज, कुर्सी और यहां तक कि कार्यालय की कार के अंदर गोमूत्र छिड़का है. इस घटना की जांच की मांग करते हुए उन्होंने मानव अधिकार आयोग का दरवाजा खटखटाया है.
रामकृष्णन ने कहा, ''कार्यालय और कार का शुद्धिकरण इसलिए किया गया, क्योंकि वह अनुसूचित जाति (दलित वर्ग) से हैं और यह उच्च जातीय व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किया गया उनके मानव अधिकार एवं नागरिक स्वतंत्रता के अधिकारों का खुला उल्लंघन है.'' दलित वर्ग के एके रामकृष्णन की याचिका के आधार पर मानव अधिकार आयोग ने मामला दर्ज कर राज्य सरकार के कर-सचिव को नोटिस भेजा है. इसका जवाब सात मई तक देना है.
दलित वर्ग के एके रामकृष्णन का कहना है, ''मैं इस मामले को सिर्फ व्यक्तिगत अपमान के तौर पर नहीं ले रहा हूँ. यह सामाजिक रूप से वंचित समूचे तबके का अपमान है. यदि एक सरकारी विभाग में शीर्ष पद पर बैठे व्यक्ति को इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ सकता है तो निचले पायदान पर रहने वाले आम लोगों की क्या हालत होगी?'' उन्होंने बताया कि पंजीयन महानिदेशक के पद पर पिछले पांच साल का उनका अनुभव बहुत खराब रहा है.
इस मामले में सबसे बड़ा और अहम सवाल तो यह है कि नये पदस्थ उच्च जातीय अधिकारी को गौ-मूत्र से कार्यालय की सफाई करने के लिये कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? क्योंकि उन्होंने तो वही किया जो उन्हें उसके धर्म-उपदेशकों ने सिखाया या उन्हें जो संस्कार प्रदान किये गये. ऐसे में केवल ऐसे अधिकारी के खिलाफ जॉंच करने, नोटिस देने या उसे दोषी पाये जाने पर दण्डित करने या सजा देने से भी बात बनने वाली नहीं है.
सबसे बड़ी जरूरत तो उस कुसंस्कृति, रुग्ण मानसिकता एवं मानव-मानव में भेद पैदा करने वाली धर्म-नीति को प्रतिबन्धित करने की है, जो गौ-मूत्र को दलित से अधिक पवित्र मानना सिखाती है और गौ-मूत्र के जरिये सम्पूर्ण दलित वर्ग को अपमानित करने में अपने आप को सर्वोच्च मानती है. इस प्रकार की नीति को रोके बिना कोई भी राज्य कितना भी शिक्षित क्यों न हो, अशिक्षित, हिंसक और अमानवीय लोगों का आदिम राज्य ही कहलायेगा.
देश के नंबर वन हिंदी मीडिया पोर्टल bhadas4media.com से साभार
मेरा भारत महान (यहाँ ऐसा भी होता है )
गरीबी का मजाक
बोकारो। गरीबी व मजबूरी इंसान से कुछ भी करा सकती है। अस्पताल का बिल चुकाने में असमर्थ एक मां-बाप को अपने दूधमुंहे को गिरवी रखना पड़ा। यह घटना बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के सुदूर गांव खिजरा निवासी एक दंपती के साथ घटी है। पीड़ित दंपती रतिया करमाली एवं उसकी पत्नी पारो देवी ने बताया कि वे रामगढ़ स्थित एक ईंट भट्ठा में मजदूरी करते हैं। शादी के 10 साल बाद भगवान ने सुनी और नवंबर में पारो ने रामगढ़ अनुमंडल अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया।
जन्म के बाद बच्चा रो नहीं रहा था, जिसके कारण दंपती ने अपने बच्चे को एक निजी नर्सिग होम में भर्ती करा दिया। इलाज के बाद बच्च ठीक भी हो गया लेकिन बिल चुकाने के लिए उनके पास 12 हजार रुपए नहीं थे। अस्पताल का बिल चुकाने में असमर्थ मां- बाप को अपने बच्चे को एक निसंतान दंपति के पास गिरवी रखना पड़ा था। उक्त निसंतान दंपती ने भी सोचा की रतिया कहां से पैसे का जुगाड़ कर पाएगा। यह बच्चा अब उनका वारिस बनेगा, लेकिन ऊपर वाला सब कुछ देख रहा था। मां की ममता के आगे उसे पिघलना पड़ा और पांच माह बाद नवजात फिर से अपनी मां की गोद में किलकारी भरने लगा।
विधायक के सहयोग से मिला मां को बेटा
सबसे फरियाद कर थक चुकी नवजात की मां पारो गोमिया के विधायक माधवलाल सिंह के पास पहुंच गई। विधायक ने उसकी पूरी कहानी सुनी और तत्काल पीड़ित दंपती को लेकर रामगढ़ चले गए। वहां उन्होंने बच्चे को रखने वाले दंपती को अस्पताल का बिल चुकाने के लिए 12 हजार और इसके अलावे पांच हजार रुपए पालन पोषण का खर्च देकर नवजात को उसके मां-बाप के हवाले कर दिया।रतिया व पारो बच्चे को लेकर अपने घर चले गए।
बोकारो। गरीबी व मजबूरी इंसान से कुछ भी करा सकती है। अस्पताल का बिल चुकाने में असमर्थ एक मां-बाप को अपने दूधमुंहे को गिरवी रखना पड़ा। यह घटना बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के सुदूर गांव खिजरा निवासी एक दंपती के साथ घटी है। पीड़ित दंपती रतिया करमाली एवं उसकी पत्नी पारो देवी ने बताया कि वे रामगढ़ स्थित एक ईंट भट्ठा में मजदूरी करते हैं। शादी के 10 साल बाद भगवान ने सुनी और नवंबर में पारो ने रामगढ़ अनुमंडल अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया।
जन्म के बाद बच्चा रो नहीं रहा था, जिसके कारण दंपती ने अपने बच्चे को एक निजी नर्सिग होम में भर्ती करा दिया। इलाज के बाद बच्च ठीक भी हो गया लेकिन बिल चुकाने के लिए उनके पास 12 हजार रुपए नहीं थे। अस्पताल का बिल चुकाने में असमर्थ मां- बाप को अपने बच्चे को एक निसंतान दंपति के पास गिरवी रखना पड़ा था। उक्त निसंतान दंपती ने भी सोचा की रतिया कहां से पैसे का जुगाड़ कर पाएगा। यह बच्चा अब उनका वारिस बनेगा, लेकिन ऊपर वाला सब कुछ देख रहा था। मां की ममता के आगे उसे पिघलना पड़ा और पांच माह बाद नवजात फिर से अपनी मां की गोद में किलकारी भरने लगा।
विधायक के सहयोग से मिला मां को बेटा
सबसे फरियाद कर थक चुकी नवजात की मां पारो गोमिया के विधायक माधवलाल सिंह के पास पहुंच गई। विधायक ने उसकी पूरी कहानी सुनी और तत्काल पीड़ित दंपती को लेकर रामगढ़ चले गए। वहां उन्होंने बच्चे को रखने वाले दंपती को अस्पताल का बिल चुकाने के लिए 12 हजार और इसके अलावे पांच हजार रुपए पालन पोषण का खर्च देकर नवजात को उसके मां-बाप के हवाले कर दिया।रतिया व पारो बच्चे को लेकर अपने घर चले गए।
Last edited by Admin on Sat Apr 30, 2011 12:55 pm; edited 1 time in total
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